वाराणसी। पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाने वाला व्रत हरितालिका तीज आज है। इसकी तैयारी महिलाओं ने एक दिन पहले ही पूरी कर ली थी। महिलाओं ने अपनी हथेली पर मेहंदी सजाई। बाजार से हरी साडिय़ां, चूडिय़ां व अन्य सामग्री की खरीदारी की। तीज को लेकर फलों के भी दाम बढ़ गए थे। गलियों में ठेले वाले सेब 80 एवं रुपये अनार 60 रुपये किलो बेच रहे थे। हरितालिका तीज का मुहूर्त शाम 6.10 से रात 7.54 बजे तक है। कुछ महिलाएं घर तो कुछ मंदिरों में जाकर कथा सुनेंगी।
इसलिए पड़ा हरतालिका नाम
हरतालिका तीज के दिन गौरी-शंकर की पूजा की जाती है। एक कथा के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की थी। माता पार्वती की सहेलियों ने उन्हें अगवा कर लिया था। ऐसे में इस व्रत को हरतालिका नाम से जाना जाने लगा। इस दिन महिलाएं कथा सुनने के बाद निर्जला रहकर पूरे दिन व्रत रखती हैं। फिर अगले दिन सुबह ही व्रत खोला जाता है। इस दिन गौरी-शंकर की मिट्टी की प्रतिमा बनाई जाती है जिससे पूजन किया जाता है।
पूजन के दौरान माता पार्वती को सुहाग का सारा सामान भी अर्पित किया जाता है। इसके अलावा रात्रि में भजन-कीर्तन भी किया जाता है। इसके साथ ही जागरण कर तीन बार आरती की जाती है। माना जाता है कि ऐसा करने से शिवशंकर प्रसन्न हो जाते हैं। हरतालिका तीज के दिन हरे रंग का विशेष महत्व होता है। इस दिन महिलाएं हरी चूडिय़ां और साड़ी पहनती हैं।
कुंवारी कन्याएं इस तरह करें व्रत
कुंवारी कन्याएं सुयोग्य जीवनसाथी पाने की कामना से हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं, जिससे उनको भी माता पार्वती की तरह ही उनका मनचाहा वर प्राप्त हो सके। हरतालिका तीज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना की जाती है। साथ में भगवान गणेश की भी पूजा होती है ताकि उनका व्रत बिना किसी विघ्न-बाधा के पूर्ण हो जाए। अगर पहली बार व्रत करने जा रही हैं तो इसकी विधि भी जान लीजिए। माता पार्वती ने भगवान शिव को पति स्वरूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। इसके लिए उन्होंने अपने हाथों से स्वयं शिवलिंग बनाया और उसकी विधि विधान से पूजा की।
यह व्रत दो प्रकार से किया जाता है। एक निर्जला और दूसरा फलहारी। निर्जला व्रत में पानी नहीं पीते हैं और न ही अन्न या फल ग्रहण करते हैं। वहीं फलाहारी व्रत रखने वाले लोग व्रत के दौरान जल पी सकते हैं और फल का सेवन करते हैं। जो कन्याएं निर्जला व्रत नहीं कर सकती हैं तो उनको फलाहारी व्रत करना चाहिए।
पूजा के लिए आवश्यक सामग्री
गीली काली मिट्टी या बालू रेत, बेलपत्र, शमी पत्र, केले का पत्ता, धतूरे का फल एवं फूल, अकांव का फूल, तुलसी, मंजरी, जनेऊ, कलेवा/लच्छा या नाड़ा, वस्त्र, सभी प्रकार के फल एवं फूल पत्ते, श्रीफल, कलश, अबीर, चंदन, घी-तेल, कपूर, कुमकुम, दीपक, फुलहरा और विशेष प्रकार की पत्तियां इनमें शामिल हैं। इसके साथ ही लकड़ी का पाटा, लाल या पीले रंग का कपड़ा, पूजा के लिए नारियल, पानी से भरा कलश, माता के लिए चुनरी, सुहाग का सामान, मेंहदी, काजल, सिंदूर, चूडिय़ां, बिंदी और पंचामृत भी आवश्यक सामाग्रियों में शामिल हैं।