पुराणों के अनुसार, प्रत्येक माह में सूर्य के एक विशिष्ट रूप की पूजा की जाती है, जिससे हर मनोकामना पूरी होती है। हमारे धर्म ग्रंथों में सूर्य को प्रधान देवता माना गया है। ग्रंथों के अनुसार, पौष मास में भग नामक सूर्य की उपासना करनी चाहिए। इस बार पौष महीने की शुरुआत 31 दिसंबर, गुरुवार से हो रही है। जो 28 जनवरी, गुरुवार तक रहेगा। ये हिंदू पंचांग का दसवां महीना है। इस महीने से जुड़ी कई परंपराएं और मान्यताएं धर्म ग्रंथों में बताई गई हैं। ऐसी ही एक परंपरा है भगवान सूर्य की पूजा करना। वैसे तो सूर्यदेव की उपासना रोज करनी चाहिए, लेकिन इस महीने में सूर्य को अर्घ्य देने का खास महत्व बताया गया है। मान्यता है कि पौष महीने में सूर्य पूजा से सेहत अच्छी रहती है और उम्र भी बढ़ती है।
वेद और उपनिषद में सूर्य
अथर्ववेद और सूर्योपनिषद के अनुसार सूर्य परब्रह्म है। ग्रंथों में बताया गया है कि पौष मास में भगवान भास्कर ग्यारह हजार किरणों के साथ तपकर सर्दी से राहत देते हैं। इनका वर्ण रक्त के समान है। शास्त्रों में ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य को ही भग कहा गया है और इनसे युक्त को ही भगवान माना गया है। यही कारण है कि पौष मास का भग नामक सूर्य साक्षात परब्रह्म का ही स्वरूप माना गया है। पौष मास में सूर्य को अर्घ्य देने तथा उसके निमित्त व्रत करने का भी विशेष महत्व धर्म शास्त्रों में लिखा है।
ग्रंथों के अनुसार क्या करें
आदित्य पुराण के अनुसार, पौष माह के हर रविवार को तांबे के बर्तन में शुद्ध जल, लाल चंदन और लाल रंग के फूल डालकर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए तथा विष्णवे नम: मंत्र का जाप करना चाहिए।
इसके साथ ही दिनभर व्रत रखना चाहिए और खाने में नमक का उपयोग नहीं करना चाहिए। संभव हो तो सिर्फ फलाहार ही करें।
रविवार को व्रत रखकर सूर्य को तिल-चावल की खिचड़ी का भोग लगाने से मनुष्य तेजस्वी बनता है। पुराणों के अनुसार पौष माह में किए गए तीर्थ स्नान और दान से उम्र लंबी होती है और बीमारियां दूर हो जाती हैं।