पेगासस मामले में केंद्र सरकार की दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार को मांगी गई जानकारी गुप्त रखे जाने का तर्क साबित करना चाहिए कि इसके खुलासे से राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर पड़ेगा।उसे अदालत के सामने रखे जाने वाले पक्ष को भी सही ठहराना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा, अगर केंद्र सरकार 16 अगस्त को एक सीमित हलफनामा दाखिल करने के बजाय इस मामले में अपना रुख स्पष्ट कर देती तो यह एक अलग स्थिति होती।
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने कुछ ऐसी सामग्री को रिकॉर्ड पर रखा है जो प्रथमदृष्टया सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विचार करने योग्य हैं। पीठ ने कहा कि यह देखते हुए कि आरोपों पर केंद्र ने कोई खंडन नहीं किया इसलिए हमारे पास याचिकाकर्ताओं द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच की मांग को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। शीर्ष अदालत ने 13 सितंबर को इस मामले में अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था क्योंकि केंद्र सरकार ने कहा था कि वह यह सार्वजनिक नहीं कर सकती कि उसकी एजेंसियों ने इस्राइल के स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया है या नहीं, क्योंकि इस तरह का खुलासा राष्ट्रीय हित के खिलाफ होगा।
सियासी शोर-शराबे से प्रभावित हुए बिना कानून का शासन बनाए रखने की कोशिश
पेगासस जासूसी कांड में विशेषज्ञ समिति नियुक्त करने वाली सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में बुधवार को कहा कि उसकी कोशिश राजनीतिक शोर-शराबे से प्रभावित हुए बगैर कानून का शासन बनाए रखना है। वह तकनीक के उपयोग, जरूरत और दुरुपयोग के आरोपों का विश्लेषण कर रही है। संविधान की आकांक्षाओं को यथावत रखने की कोशिश भी कर रही है, क्योंकि जासूसी मामले में दायर याचिकाएं ऑर्वेलियन चिंता जताती हैं।
‘अगर आप कोई राज रखना चाहते हैं तो उसे खुद से भी छिपाकर रखिए’, मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस हिमा कोहली ने आदेश बिहार के मोतिहारी में जन्मे अंग्रेज उपन्यासकार जॉर्ज ऑर्वेल के उपन्यास 1984 के इस कथन से शुरू किया। उन्हाेंने कहा, याचिकाएं ऑर्वेलियन चिंताएं जताती हैं। ऑर्वेलियन यानी सर्वसत्तावादी सरकार का प्रॉपेगैंडा, कड़ी निगरानी, भ्रामक सूचनाओं, झूठ व ऐतिहासिक व्यक्तित्वों की साख बिगाड़कर व नाम दबाकर नागरिकों पर शासन करना।
ऑर्वेल ने इसे स्वतंत्र व खुले समाज के लिए हानिकारक बताया था। कोर्ट ने कहा, अदालत हमेशा सजग रही है कि वह सियासी दलदल में नहीं फंसे, लेकिन नागरिकों के मूल अधिकारों का शोषण रोकने से भी पीछे नहीं हटी है। कोर्ट की समिति पूरी तरह से स्वतंत्र है। न्याय होना जरूरी है और न्याय होते दिखना भी जरूरी है। निजता के अधिकार की रक्षा हर कोई चाहता है। तकनीक का इस्तेमाल जनहित में किया जाना चाहिए।
निजता है तो विकल्प चुनने की क्षमता और आजादी है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हम सूचना क्रांति युग में जी रहे हैं। व्यक्ति का समस्त जीवन क्लाउड स्टोरेज या किसी डिजिटल फाइल में सुरक्षित रखे जा सकते हैं। हमें समझना होगा कि तकनीक जहां जीवन सुधार रही है, हमारी निजता भी भंग कर सकती है। केवल पत्रकार या सामाजिक कार्यकर्ता ही नहीं, एक लोकतांत्रिक सभ्य समाज के सभी सदस्य निजता अक्षुण्ण रखना चाहते हैं। इसी के बल पर हम विकल्प चुनने की क्षमता व स्वतंत्रता का उपयोग कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने अमेरिका व इंग्लैंड में निजता अधिकारों का उल्लेख करते हुए कहा कि वहां इसे लोगों के बजाय संपत्ति केंद्रित रखा गया। ऐतिहासिक सेमेन केस में कहा गया ‘हर व्यक्ति का घर उसका किला है।’ इसी के बल पर लोगों की गैर-कानूनी तलाशी रोकने का कानून बना।
सिफारिश : राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा व जांच एजेंसी बनाने पर मांगे सुझाव
कानून निर्माण व सुधार : समिति अपनी सिफारिशें निगरानी से जुड़े नए कानून बनाने या मौजूदा कानूनों में सुधार व संशोधन के लिए दे सकती है। इससे निजता के अधिकार को और पुख्ता किया जा सकेगा। देश की सुरक्षा खासतौर से साइबर मामलों में बेहतर होगी।
निजता की सुरक्षा : नागरिकों की निजता में घुसपैठ रोकने के लिए सिफारिशें देगी। गैरकानूनी जासूसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाने की व्यवस्था सुझाएगी।
स्वतंत्र एजेंसी का गठन : समिति पूर्ण क्षमतायुक्त राष्ट्रीय एजेंसी की स्थापना पर सिफारिश देगी। एजेंसी साइबर सुरक्षा से जुड़ी खामियों व कमजोरियों की जांच करेगी। साइबर हमलों व खतरों की पहचान व जांच करेगी।
इनकी निगरानी में होगी जांच
जस्टिस आरवी रवींद्रन: अंबानी मामले में सुनवाई से खुद को अलग किया क्योंकि मुकेश अंबानी को सलाह देने वाली फर्म में उनकी बेटी काम करती थी
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस राजू वरदराजुलु रवींद्रन ने मार्च 1968 में वकील के तौर पर कॅरिअर शुरू किया।
1993 में कर्नाटक हाईकोर्ट में स्थायी जज और 2004 में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने। सितंबर 2005 में सुप्रीम कोर्ट में प्रमोट हुए। यहां अक्तूबर 2011 तक यानी करीब 6 साल सेवाएं दीं। इस दौरान केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में ओबीसी आरक्षण का कानून बनाए रखने जैसे कई मील का पत्थर कहे जाने वाले निर्णय दिए।
यूपी, गुजरात, हरियाणा, गोवा के राज्यपालों को राष्ट्रपति के हटाए जाने पर जनहित याचिका पर निर्णय देने वाली पांच सदस्यीय सांविधानिक पीठ में शामिल थे। पीठ ने जुलाई 2004 में निर्णय दिया कि राज्यपालों को इस आधार पर नहीं हटाया जा सकता कि वे केंद्र में सत्ताधारी राजनीतिक दल की नीतियों या विचारधारा के अनुरूप नहीं हैं।
2009 में जस्टिस रवींद्रन ने अंबानी बंधुओं के गैस विवाद के मुकदमे से खुद को यह कहते हुए अलग कर लिया कि उनकी बेटी ऐसी लॉ फर्म के लिए काम करती हैं, जो मुकेश अंबानी समूह को एक अन्य किसी मामले में सलाह देती है।
बीसीसीआई में सुधार के लिए बनी आरएम लोढ़ा समिति के सदस्य रहे। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने हादिया मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की जांच की निगरानी सौंपी थी। इसमें एक मुस्लिम युवक से निकाह के बाद हादिया के जबरन धर्म परिवर्तन के आरोप थे। उन्होंने इस जिम्मेदारी से इनकार कर दिया।
ये अधिकारी होंगे निगरानी समिति प्रमुख के सहायक
आलोक जोशी : 1976 बैच के आईपीएस अधिकारी (सेवानिवृत्त)। जोशी को तकनीकी क्षेत्र में गहन जानकारी रखने वाला अधिकारी माना जाता है। इंटेलिजेंस ब्यूरो के संयुक्त निदेशक रहे हैं। खुफिया एजेंसी रॉ के सचिव और नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन में अध्यक्ष पद भी संभाल चुके हैं।
डॉ. संदीप ओबेरॉय : अंतरराष्ट्रीय मानक संगठन, अंतरराष्ट्रीय इलेक्ट्रो-टेक्निकल कमीशन व संयुक्त तकनीकी समिति की सह समिति के अध्यक्ष। समिति सॉफ्टवेयर उत्पादों व सिस्टम के मानक तैयार करती है। दिल्ली के इंद्रप्रस्थ इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के साइबर सुरक्षा शिक्षा व शोध केंद्र के सलाहकार।
जांच समिति की विशेषज्ञ त्रिमूर्ति : प्रो. नवीन कुमार चौधरी : साइबर सुरक्षा में 20 साल का अनुभव
गांधीनगर के राष्ट्रीय फॉरेंसिक साइंस विश्वविद्यालय के डीन। साइबर सुरक्षा व डिजिटल फॉरेंसिक के प्रोफेसर नवीन 20 साल से अकादमिक क्षेत्र में हैं। साथ ही, साइबर सुरक्षा, साइबर नीति, नेटवर्क में खामियां तलाशने वाले विशेषज्ञ भी हैं।
प्रो. प्रभारन पी : सुरक्षा खामियां तलाशने की विशेषज्ञता
अमृता विश्व विद्यापीठ केरल में इंजीनियरिंग के प्रोफेसर। दो दशक से कंप्यूटर साइंस व सुरक्षा पर काम कर रहे हैं। डिवाइस में मालवेयर की पहचान, बुनियादी सुरक्षा, जटिल बाइनेरी विश्लेषण, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस व मशीन लर्निंग के विशेषज्ञ।