लखनऊ। राजधानी में विकास के दावे फुस्स हो गए हैं। यहां हर ओर अव्यवस्थाओं का आलम है। कहीं सडक़ों में बड़े-बड़े गड्ढे हो गए हंै, कहीं लोग जलभराव से जूझ रहे हैं। यातायात व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है। लोग घंटों जाम से जूझ रहे हैं। वहीं पशुओं ने गलियों और चौराहों पर डेरा डाल रखा है। यह हाल तब है जब सरकार राजधानी को स्मार्ट बनाने की कवायद कर रही है।
राजधानी में चारों ओर अव्यवस्था नजर आती है। करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी यहां गंदगी का साम्राज्य फैला है। सडक़ों से लेकर बाजारों तक में कूड़े के ढेर लगे हैं। पशुओं की धर-पकड़ के अभियान के बावजूद चौराहों और गलियों में आवारा पशु टहल रहे हैं। ये हादसों को न्योता दे रहे हैं। यही नहीं कई बार ये पशु लोगों पर हमला कर देते हैं। पिछले दिनों साड़ों के हमले में कई लोगों की मौत हो चुकी है। अतिक्रमण के कारण सडक़ें गलियों में तब्दील हो चुकी है। अमीनाबाद जैसे तमाम इलाकों में अतिक्रमण है। यह हाल तब है जब नगर निगम अतिक्रमण हटाओ अभियान का दावा करती है। अतिक्रमण के कारण शहर में जाम की स्थिति बनी रहती है। लोग गंतव्य तक पहुंचने के लिए घंटों जाम से जूझते रहते हैं। सीवर चोक पड़े हैं और नालियां बजबजाती हैं। पुराने लखनऊ की हालत और भी खराब है। इसके कारण तमाम इलाकों में संक्रमण का खतरा पैदा हो गया है, लेकिन राजधानी को व्यवस्थित करने की जिम्मेदारी निभाने वाले विभाग को इसकी कोई परवाह नहीं दिखाई पड़ती है। वहीं नगरवासियों की शिकायतों को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है।