नई दिल्ली। अंग्रेजों के जमाने से चला आ रहा राजद्रोह कानून अब बीते दिनों की बात हो जाएगी। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इंडियन पीनल कोड, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड और इंडियन एविडेंस एक्ट को खत्म कर उनकी जगह भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम लाने से संबंधित विधेयक लोकसभा में पेश किया।
खत्म होगा राजद्रोह कानून
प्रस्तावित विधेयक से राजद्रोह कानून को पूरी तरह से बाहर कर दिया गया है। अमित शाह ने कहा अंग्रेजों के जमाने के बने कानूनों का मूल उद्देश्य दंड देना था, जबकि प्रस्तावित कानूनों का उद्देश्य न्याय देना है और इसकी आत्मा भारतीय है। पेश करने के बाद शाह के अनुरोध पर तीनों विधेयकों को गृह मंत्रालय से संबंधित स्थायी समिति को भेज दिया गया।
मॉब लींचिंग के लिए अलग से सजा का प्रावधान
प्रस्तावित कानूनों में मॉब लींचिंग के लिए अलग से सजा का प्रावधान किया गया है, लेकिन इसे धर्म निरपेक्ष रखा गया है। किसी चोर को भी यदि भीड़ मार देती है, तो उन सभी को माब लींचिंग के प्रस्तावित कानून के तहत सजा होगी। झारखंड जैसे कई राज्यों में महिलाओं को डायन बताकर की जा रही हत्याओं पर माब लींचिंग कानून की धाराएं लगेंगी।
पछचान छिपाकर शादी करने पर सजा का प्रावधान
इसी तरह से राज्यों को अब लव जेहाद के लिए अलग से कानून बनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। प्रस्तावित कानून में पहचान छुपाकर या नौकरी, प्रोन्नति दिलाने के झूठे वायदे कर दुष्कर्म के लिए सजा का प्रावधान किया गया है। लव जेहाद के मामले इसके तहत कवर हो जाएंगे।
प्रस्तावित कानून में राजद्रोह को भले ही जगह नहीं मिली हो, लेकिन राष्ट्र की संप्रभुता के खिलाफ अपराधों के लिए अलग से सजा का प्रावधान जरूर किया गया है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि राजद्रोह का कानून राजा के खिलाफ अपराध से जुड़ा था, लेकिन नया कानून सिर्फ राष्ट्र की सुरक्षा और संप्रभुता पर खतरे की स्थिति में ही लागू होगा। दरअसल, इंडियन पीनल कोड 1860 में, इंडियन प्रोसीजर कोड 1898 में और इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 में ब्रिटिश सरकार ने बनाया था।
भविष्य में जरूरत के हिसाब से होंगे बदलाव
अमित शाह ने कहा कि इन बाद में जरूरत के मुताबिक इन कानूनों में फेरबदल जरूर किये गए, लेकिन उनकी आत्मा पाश्चात्य रही और जिसका उद्देश्य दंड देना था, लेकिन नए कानूनों का उद्देश्य किसी को दंडे देना नहीं, बल्कि भारत के नागरिकों के संविधान प्रदत सभी अधिकारों की सुरक्षा करना है।
उन्होंने कहा कि इन तीनों कानूनों में गुलामी की निशानियां भरी थी और 475 स्थानों पर पार्लियामेंट ऑफ यूनाइटेड किंग्डम, प्रोवेंसियल एक्ट, लंदन गजट जैसे शब्द लिखे हुए थे। यहीं नहीं, अंग्रेजों ने प्राथमिकता के आधार पर राजद्रोह और ट्रेन डकैती जैसे अपराधों को सबसे ऊपर रखा था। जबकि प्रस्तावित विधेयक में महिलाओं के साथ अपराध और हत्या जैसे मामलों को पहले चैप्टर में स्थान में मिला है।
कानून में डिजिटल इंडिया की छाप
भारत की मौजूदा जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाए गए कानूनों में डिजिटल इंडिया की भी पूरी छाप होगी। अमित शाह ने कहा कि इन कानूनों में अत्याधुनिक तकनीक का इस तरह से प्रावधान किया गया है कि अगले 50 सालों तक इन्हें बदलने की जरूरत नहीं पड़े। इसमें इलेक्ट्रॉनिक, फारेंसिक, वीडियो कांफ्रेसिंग के साथ ही ईमेल या एसएमएस से समन भेजने का पूरा प्रविधान है।
आईपीसी की मौजूदा 511 धाराओं की जगह सिर्फ 356 धाराएं
प्रस्तावित भारतीय न्याय संहिता में आईपीसी की मौजूदा 511 धाराओं की जगह सिर्फ 356 धाराएं होगी। पुरानी 175 धाराओं में बदलाव कर नए संहिता में शामिल किया गया है और आठ नई धाराएं जोड़ी और 22 निरस्त की गई हैं।
सीआरपीसी की 478 धाराओं के स्थान पर 511 धाराएं
इसी तरह से भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में सीआरपीसी की 478 धाराओं के स्थान पर 511 धाराएं होंगी। इनमें 160 धाराओं को बदला गया है, नौ नई जोड़ी गई हैं और नौ को निरस्त किया गया है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम में अब 170 धाराएं
इसी तरह से भारतीय साक्ष्य अधिनियम में पहले 167 की तुलना में अब 170 धाराएं होंगी। जिनमें 23 में बदलाव किये गए हैं, एक नई जोड़ी गई है और पांच निरस्त कर दी गई है।
चार साल तक विचार विमर्श
अमित शाह ने कहा कि चार साल तक व्यापक विचार विमर्श के बाद 3 विधायकोंको तैयार किया गया है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट से सभी न्यायाधीशों, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों, सभी सांसदों, विधायकों, राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासकों के साथ ही विधि विश्वविद्यालयों की भी सलाह मांगी गई थी।
इनमें से 18 राज्यों, छह संघ शासित प्रदेशों, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों, 16 हाईकोर्ट, 142 सांसदों, 270 विधायकों और आम जनता से विचार मिले, जिन्हें इनमें शामिल किया गया है।