रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत अभियान को सफल बनाने के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नई रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीएपी) को मंजूरी प्रदान की है। नई नीति के तहत देश में रक्षा उत्पादन बढ़ाने के उपायों को सरल किया गया है। साथ ही विदेशों से होने वाली रक्षा खरीद समेत सभी प्रकार की रक्षा सामग्री में स्वदेशी निर्माण की हिस्सेदारी को बढ़ाया गया है। नई नीति एक अक्टूबर से लागू होगी।
इस मौके पर सिंह ने कहा कि डीएपी में भारत के घरेलू उद्योग के हितों की सुरक्षा करते हुए आयात प्रतिस्थापन तथा निर्यात दोनों के लिए विनिर्माण केंद्र स्थापित करने के लिहाज से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) को बढ़ावा देने के प्रावधान भी शामिल हैं।
नई खरीद प्रक्रिया में खरीद की पांच में से चार प्रक्रियाओं में स्वदेशी निर्माण (कंपोनेंट) के प्रतिशत को बढ़ाया गया है। बाई इंडियन-आईडीडीएन और बाई इंडियन श्रेणियों में खरीद के लिए पहले शर्त यह थी कि जो रक्षा सामग्री सरकार खरीद रही है, उसका 40 फीसदी स्वदेश निर्मित हो। अब इसे 50 फीसदी कर दिया गया। एक नई श्रेणी जोड़ी गई है, बाई ग्लोबल (मैन्युफैक्चर इन इंडिया) में 50 फीसदी स्वदेशी हिस्सेदारी होगी। या तो कंपनी को 50 फीसदी पाट्स भारत में बनाने होंगे या भारतीय कंपनी से खरीदने होंगे। इसी प्रकार विदेशों से होने वाली खरीद बाई ग्लोबल में 30 फीसदी पाट्स भारतीय कंपनियों से खरीदने अनिवार्य होंगे।
इससे पूर्व रक्षा मंत्री ने ट्वीट किया कि नयी नीति के तहत ऑफसेट दिशानिर्देशों में भी बदलाव किये गये हैं और संबंधित उपकरणों की जगह भारत में ही उत्पाद बनाने को तैयार बड़ी रक्षा उपकरण निर्माता कंपनियों को प्राथमिकता दी गयी है।
सिंह ने कहा कि डीएपी को सरकार की आत्मनिर्भर भारत की पहल के अनुरूप तैयार किया गया है और इसमें भारत को अंतत: वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाने के उद्देश्य से मेक इन इंडिया की परियोजनाओं के माध्यम से भारतीय घरेलू उद्योग को सशक्त बनाने का विचार किया गया है।
नई प्रक्रिया में प्रस्तावों की मंजूरी में विलंब को कम करने के लिहाज से 500 करोड़ रुपये तक के सभी मामलों में आवश्यकता की स्वीकृति (एओएन) को एक ही स्तर पर सहमति देने का भी प्रावधान है।