अयोध्या । राममंदिर के लिए नींव निर्माण का कार्य अतिशीघ्र शुरू होगा। मंदिर निर्माण समिति ने मजबूत नींव के लिए हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय भूभौतिकी अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) से भी रिपोर्ट मांगी है। दावा किया जा रहा है कि 15 दिन में रिपोर्ट आते ही सारे संशय दूर हो जाएंगे और पुरातन विधि से नींव की खोदाई करके सीमेंट-बालू-गिट्टी के मिश्रण के बजाय अब मिर्जापुर के पत्थरों से मजबूत नींव बनेगी।
राममंदिर की नींव के नक्शे पर मुहर दिल्ली में मंगलवार को हुई मंदिर निर्माण समिति की बैठक में लग गई थी। पहले दो सौ फीट गहराई में मिट्टी के नमूने जांचे गए तो सामने आया कि वहां भुरभुरी बालू है। इसे लेकर ट्रस्ट के कुछ लोगों ने तर्क दिए कि कभी सरयू की धारा राममंदिर के नीचे बहती रही होगी, लेकिन विशेषज्ञ इसे आम बात मानते हैं।
उनका कहना था कि खुदाई में पानी की कई सतह के बाद कई जगह बालू मिलती है। चूंकि राममंदिर को सैकड़ों साल तक अक्षुण्ण रखने के लिए नींव के नीचे पत्थर होना चाहिए, इसलिए अब नई तकनीकी टीम पत्थर की नींव बनाने का प्रपोजल दे रही है।
श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय व मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र ने तकनीकी विशेषज्ञों से अतिशीघ्र नींव का काम शुरू करने को कहा है। ट्रस्ट के सूत्रों ने बताया कि 15 दिन के भीतर नींव का काम हर हाल में शुरू होने की उम्मीद है।
अब एनजीआरआई से राममंदिर की मजबूत नींव के लिए रिपोर्ट मांगी गई है। एनजीआरआई का सुझाव नींव का निर्णायक माना जाएगा। एनजीआरआई के 14 विशेषज्ञ दो जनवरी तक अयोध्या पहुंच जाएंगे और आठ दिन मिट्टी और जमीन का अध्ययन करेंगे व इसके फोटोग्राफ लेंगे। इसके बाद जांच कर वह अपनी रिपोर्ट मंदिर का मजबूत आधार सुनिश्चित करने के लिए गठित आठ सदस्यीय विशेषज्ञ समिति को सौंपेंगे।
समिति रिपोर्ट का अध्ययन कर अंतिम फैसला लेगी। माना जा रहा है कि इस कार्य में 15 दिन लग जाएंगे उसके तत्काल बाद नींव का काम शुरू कर दिया जाएगा। तय हुआ है कि अब 1200 पिलर नहीं गलाए जाएंगे बल्कि उनके स्थान पर मिर्जापुर के पत्थरों से नींव तैयार की जाएगी।
भूमि की निचली सतह में करीब पचास फिट तक मलवा है जिसे हटाने के बाद पत्थरों को बिछाया जाएगा। फिर पत्थरों की एक-एक लेयर पर भार देकर उनकी क्षमता जांची जाएगी। भार क्षमता की जांच के बाद नींव का काम तेज हो जाएगा। इस काम को तेजी से आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी टाटा कंसल्टेंसी व एलएंडटी को सौंपी गई है। नींव का काम पूरा होने में करीब छह माह लगेंगे।
इसरो से मंगवाए गए मंदिर निर्माण स्थल के चित्र
श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने इसरो से राममंदिर निर्माण स्थल के चित्र भी मंगवाए हैं। पौराणिक तथ्य है कि गोस्वामी तुलसीदास ने जब रामचरित मानस की रचना की थी उस समय सरयू नदी रामजन्मभूमि के और करीब से बहती थी। इसीलिए यहां वाटर लेवल का स्टेटस भी और स्थानों के अपेक्षा ऊपर है, यही कारण है कि जमीन के नीचे रेत की परत है, जबकि तलाश मजबूत और ठोस जमीन की है। इसको देखते हुए ट्रस्ट ने इसरो से राममंदिर के चित्र मंगवाए हैं ताकि प्राचीन सरयू की धारा कहां तक थी इसका अनुमान लगाया जा सके।