नई दिल्ली। भारतीय बैंकों के पास पैसे की कमी नहीं है। लेकिन वे छोटी कंपनियों को लोन देने से कतरा रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) बैंकों को प्रोत्साहित कर रहा है कि बैंक कंपनियों को ज्यादा से ज्यादा कर्ज दें, लेकिन बैंक कर्ज नहीं देना चाह रहे। अर्थव्यवस्था पर कोरोनावायरस महामारी के नकारात्मक प्रभावों के बीच बैंक अपने पैसे की सुरक्षा पर अधिक जोर दे रहे हैं। इसलिए वाणिज्यिक बैंकों ने रिकॉर्ड 62 अरब डॉलर की राशि आरबीआई के पास जमा कर रखी है, जबकि इसपर बैंकों को बहुत कम ब्याज मिलता है। इसके कारण कंपनियों को राहत देने के लिए सरकार को आगे आना पड़ा। सरकार ने एमएसएमई सेक्टर और गैर-पारंपरिक कर्जदाताओं के लिए बुधवार को बाजार में नकदी बढ़ाकर और सरल ऋण के जरिये 62 अरब डॉलर की राशि की राहत दी थी।
कर्ज नहीं देने का मुख्य कारण जोखिम लेने की भावना का अभाव है
आरबीआई के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने कहा कि कर्ज नहीं दिए जाने का कारण नकदी या ब्याज दर नहीं है। बल्कि जोखिम लेने की भावना का अभाव है। इसके कारण सरकार को कई कदम उठाने पड़े हैं और वह बैंकों को भी गारंटी दे रही है। क्रिसिल लिमिटेड के मुताबिक बैंकों पर पहले से ही बैड लोन का दबाव है। इस बीच कोरोनावायरस के कारण देश में लॉकडाउन भी लागू हो गया। लॉकडाउन के कारण जहां आर्थिक गतिविधियां ठप हो गईं, वहीं बेरोजगारी भी 27 फीसदी पर पहुंच गई। चालू कारोबारी साल में कर्ज की वृद्धि दर घटकर 2-3 फीसदी पर आ सकती है, जो एक साल पहले 6 फीसदी पर थी। जबकि चीन की स्थिति अलग है। वहां सरकार की अपील के बाद सरकारी बैंकों ने पहली तिमाही में 22 फीसदी ज्यादा लोन दिए। एक साल पहले की समान तिमाही में बैंकों ने 20 फीसदी ज्यादा लोन दिए थे।
एमएसएमई को दी गई लोन गारंटी को अधिक सफलता मिलने की उम्मीद नहीं
भारत में लोन नहीं मिल पाने के कारण छोटी कारोबारी इकाइयों के अस्तित्व पर खतरा पैदा हो गया है। ये लघु उद्यम देश की अर्थव्यवस्था में एक तिहाई योगदान करते हैं। ये देश में सबसे ज्यादा रोजगार देते हैं। थिंक टैंक सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनोमी के मुताबिक लॉकडाउन के कारण पिछले महीने देश में 12.2 करोड़ लोगों की नौकरी छूट चुकी है। ब्रोकरेज कंपनी आनंद राठी के मुख्य अर्थशास्त्री सुजान हाजरा ने कहा कि ट्र्रेंड को बदलने में सरकार के नए कार्यक्रम को अधिक सफलता मिलने की उम्मीद नहीं है। नए पैकेज के तहत एमएसएमई सेक्टर को चार साल के लिए करीब 40 अरब डॉलर के लोन की गारंटी दी गई है। इसका लाभ 45 लाख कंपनियों को मिलेगा। कंपनियों को 12 महीने के लिए लोन भुगतान पर मोरेटोरियम दिया गया है। इसके बाद भी यदि कंपनियां डिफॉल्ट करती हैं, तो उसका बोझ सरकार उठाएगी।
बैंक लोन डिफॉल्ट का जोखिम अपने बैलेंस शीट पर नहीं लेना चाहते
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक हाजरा ने कहा कि इस कार्यक्रम का लाभ देश की 6.3 करोड़ छोटी कंपनियों के दसवें हिस्से को भी मुश्किल से मिलेगा। बैंक इन लोन के डिफॉल्ट का जोखिम अपने बैलेंस शीट पर नहीं लेना चाहते हैं। नकदी के अभाव में दो करोड़ और लोगों की नौकरी छूट सकती है। इस बीच ए प्लस और इससे कम रेटिंग वाले रुपया कॉरपोरेट बांड की बिक्री नौ साल के निचले स्तर पर आ चुकी है। एक्सिस बैंक के सीईओ अमिताभ चौधरी ने पिछले महीने मार्च तिमाही का नतीजा जारी करने के बाद कहा था कि अगर मैं अपनी खिड़की से बाहर देखूं तो मुझे कोई आर्थिक गतिविधि नजर नहीं आएगी। संभावित बैड लोन के विरुद्ध बैंक का प्रोविजन 185 फीसदी बढ़ गया है। नया लोन देने से पहले मुझे यह समझना होगा कि मैं कितना जोखिम ले रहा हूं। फिलहाल मुझे वह दिखाई नहीं दे रहा।
शेयर बाजार का बैंकिंग इंडेक्स इस साल करीब 41 फीसदी गिर चुका है
शेयर बाजार का बैंकिंग इंडेक्स इस साल करीब 41 फीसदी गिर चुका है। जबकि इस दौरान मुख्य सूचकांक में सिर्फ 25 फीसदी गिरावट आई है। आरबीआई ने लॉकडाउन के दौरान कॉरपोरेट सेक्टर के लिए जो फंडिंग कार्यक्रम जारी किया था,उसके प्रति बैंकों की प्रतिक्रिया से भी बैंकों के संकोच का पता चलता है। फंडिंग कार्यक्रम की पहली किस्त तीन गुना सब्सक्राइब हुई। जानकार सूत्रों ने बताया कि रिलायंस इंडस्ट्रीज, टाटा स्टील, लार्सेन एंड टुब्रो और महिंद्रा एंड महिंद्रा ने आरबीआई के स्पेशल रिफाइनेंसिंग विंडो के जरिए ऑफर किए गए एक लाख करोड़ रुपए (13.2 अरब डॉलर) का करीब एक चौथाई हिस्सा हासिल किया।
महामारी से पहले ही बैंकों की लोन वृद्धि दर में गिरावट देखी जा रही थी
जब आरबीआई ने देखा कि पपहले राउंड अधिकतर लाभ बड़ी कंपनियों ने ले ली, तो दूसरे राउंड को आरबीआई ने कम रेटिंग वाले शेडो बैंकों को लक्षित किया। ये ऐसे शेडो बैंक थे, जो छोटी कंपनियों को ज्यादा कर्ज देते थे। ऑफर किए गए250 अरब रुपए में से इन बैंकों ने सिर्फ आधा ही लिया। महामारी से पहले ही भारतीय बैंकों के लोन की वृद्धि दर में गिरावट देखी जा रही थी। बैंक सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान दे रहे थे और फंड को आरबीआई के पास रख रहे थे। 27 मार्च को जब आरबीआई ने वित्तीय प्रणाली में स्थिरता लाने के लिए और कर्ज को बढ़ावा देने के लिए फंडिंग कार्यक्रम शुरू किया, तब से बैंकों ने हर दिन रिकॉर्ड राशि आरबीआई में जमा की है। जबकि आरबीआई में पैसे रखने से बैंकों को महज 3.75 फीसदी ही मिलता है। फिच रेटिंग्स के एक निदेशक सास्वत गुहा ने कहा कि संपत्ति की गुणवत्ता और खराब होने की आशंका से बैंक आगे भी जोखिम लेने से कतराते रह सकते हैं।