श्रीनगर। जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन का कार्य पूरा हो चुका है और दो नए केंद्रशासित प्रदेशों का उदय हो चुका है पर तीन पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा 100 दिन बाद भी हिरासत में हैं। इनके अलावा 300 के करीब राजनीतिक नेता व कार्यकर्ता भी अलग अलग जगहों पर नजरबंद या हिरासत में हैं। बड़े नेताओं के हिरासत में होने के कारण प्रदेश में सियासी गतिविधियां लगभग ठप हैं। केवल भाजपा ही कश्मीर में कुछ सक्रियता दिखाने का प्रयास कर रही है।
गौरतलब है कि पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 को लागू किए जाने से पूर्व राज्य सरकार ने एहतियात के तौर पर नेशनल कांग्रेस अध्यक्ष डा. फारूक अब्दुल्ला और उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला और पीडीपी अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती समेत सभी प्रमुख राजनीतिक नेताओं व कार्यकर्ताओं को एहतियातन हिरासत में ले लिया या फिर उन्हें उनके घरों में नजरबंद रखा। सिर्फ भाजपा से जुड़े नेता ही एहतियातन हिरासत और नजरबंदी से मुक्त रहे।
250 नेता व कार्यकर्ता अभी भी है बंद
हालांकि हालात में सुधार के आधार पर राज्य सरकार ने बड़ी संख्या में राजनीतिक नेताओं को रिहा किया गया। तीनों पूर्व मुख्यमंत्री और करीब 34 अन्य बड़े नेताओं समेत मुख्यधारा की राजनीति से जुड़े करीब 250 नेता व व कार्यकर्ता फिलहाल बंद हैं। रिहाई पाने वाले नेताओं ने हालात सामान्य बनाए रखने में सहयोग का एक बांड भरकर संबधित प्रशासन को सौंपा है।
पहले भी शीर्ष नेताओं को जाना पड़ा जेल
यह पहला मौका नहीं है जब जम्मू कश्मीर में शीर्ष पद पर आसीन रहे किसी नेता को यूं जेल जाना पड़ा हो। लेकिन 1975 के बाद यह पहला मौका है। इससे पूर्व नेशनल कांफ्रेंस के संस्थापक स्व शेख मोहम्मद अब्दुल्ला लगभग दो दशक तक जेल में रहे। डा. फारूक, उमर और महबूबा को पहली बार इस तरह हिरासत में रहना पड़ रहा है। डा. फारूक अब्दुल्ला पर पीएसए लगाया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बड़ा भाई बताने वाले पीपुल्स कांफ्रेंस के
चेयरमैन सज्जाद गनी लोन भी 100 दिन हिरासत में पूरे कर चुके हैं। वह पहले भी कई बार नजरबंदी और एहतियातन हिरासत का सामना कर चुके हैं।
राज्य प्रशासन ने इन नेताओं को भी सशर्त रिहा करने की कथित तौर पर पेशकश की थी लेकिन इन्होंने पांच अगस्त से पूर्व की स्थिति को बहाल करने की कथित तौर पर शर्त रखी हुई है। डा. फारूक अब्दुल्ला को पहले 12 दिन के लिए पीएसए के तहत कैद किया गया और उसके बाद गत माह उनके पीएसए की अवधि को तीन माह के लिए बढ़ाया गया है। सिर्फ मुख्यधारा के ही नहीं अलगाववादी खेमे के अधिकांश नेता और कार्यकर्ता भी हिरासत में हैं या नजरबंद हैं।