26 अगस्त को भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को श्री राधाष्टमी मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन श्री राधा का अवतरण हुआ था। इस दिन श्री राधा के लिए व्रत किया जाता है। इस व्रत का पुण्यफल बेहद ही शुभ माना जाता है। एक बार देवर्षि नारद मुनि ने भगवान सदाशिव के श्री चरणों में प्रणाम किया और उनसे पूछा कि लक्ष्मी, देवपत्नी, महालक्ष्मी, सरस्वती,अंतरंग विद्या, वैष्णवी प्रकृति, वेदकन्या, मुनिकन्या आदि में से श्री राधा कौन हैं। भगवान सदाशिव ने इस प्रश्न का उत्तर कुछ इस प्रकार दिया।
भगवान सदासिव ने कहा कि किसी एक की क्या बात कही जाए। श्री राधा के चरणकमलों के सामने तो कोटि-कोटि महालक्ष्मी भी नहीं ठहर सकती हैं। तीनों लोकों में कोई ऐसा नहीं है जो एक मुख से श्री राधा के रूप, गुण और सुंदरता का वर्णन करने का सामर्थ्य रखता है। उनके रूप ने तो जगत को मोहने वाले श्री कृष्ण को भी मोह लिया। यही कारण है कि अनन्त मुख से भी मैं उनका वर्णन नहीं कर सकता हूं।
अगर श्री राधा आपकी इष्टदेव हैं तो आपको राधाष्टमी का व्रत अवश्य करना चाहिए। यह व्रत श्रेष्ठ है। श्री राधा सर्वतीर्थमयी एवं ऐश्वर्यमयी हैं। जो भी व्यक्ति इनकी उपासना करता है उनके घरों में हमेशा लक्ष्मी का वास होता है। जो राधा भक्त पूरी श्रद्धा और सच्चे मन से श्री राधाष्टमी का व्रत करते हैं उनकी मनोकामनाएं श्री राधा अवश्य पूरी करती हैं। यह व्रत करने से व्यक्ति को सुखों की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस दिन राधा जी से जो मुराद मांगी जाती है वो पूरी होती है। कहा तो यह भी जाता है कि अगर राधा जी की पूजा न की जाए तो श्रीकृष्ण की पूजा भी अधूरी रह जाती है। जो भी व्यक्ति श्री राधा जी के नाम मंत्र का जाप करता है वह धर्मार्थी बन जाता है। वहीं, अर्थार्थी को धन और मोक्षार्थी को मोक्ष की प्राप्ति होती है।