फतेहपुर। शहर के रेल बाजार स्थित गुरूद्वारे में गुरूद्वारा सिंह गुरू सभा के प्रधान पपिंदर सिंह की ओर से चौथे गुरू गुरू रामदास का प्रकाश पर्व धूमधाम से मनाया गया। बड़ी संख्या में समुदाय के लोगों ने गुरूद्वारे पहुंचकर कीर्तन में हिस्सा लिया। तत्पश्चात लंगर का आयोजन हुआ। जिसमें श्रद्धालुओं ने पंक्ति में बैठकर लंगर का प्रसाद ग्रहण किया।
ज्ञानी गुरवचन सिंह ने बताया कि गुरु रामदास साहेब जी का प्रकाश (जन्म) कार्तिक वदी 2, विक्रमी संवत् 1591 24 सितंबर सन् 1534 को पिता हरदास के घर माता दया की कोख से लाहौर (अब पाकिस्तान में) की चूना मंडी में हुआ था। गुरु रामदास सिक्खों के चौथे गुरु थे। बाल्यकाल में भाई जेठाजी के नाम से बुलाया जाता था। छोटी उम्र में ही गुरु रामदास साहेब के माता-पिता का स्वर्गवास हो गया। इसके बाद बालक जेठा अपने नाना-नानी के पास बासर के गांव में आकर रहने लगे। कुछ सत्संगी लोगों के साथ बचपन में ही गुरु रामदास ने गुरु अमरदास के दर्शन किए। जो कि सिक्खों के तीसरे गुरु थे और आप उनकी सेवा में पहुंचे। आपकी सेवा से प्रसन्न होकर गुरु अमरदास ने अपनी बेटी भानी जी का विवाह भाई जेठाजी से करने का निर्णय लिया। आपका विवाह होने के बाद आप गुरु अमरदास की सेवा जमाई बनकर न करते हुए एक सिक्ख की तरह तन-मन से करते रहे। गुरु अमरदास जानते थे कि जेठाजी गुरुगद्दी के लायक हैं, पर लोक-मर्यादा को ध्यान में रखते हुए आपने उनकी परीक्षा भी ली और गुरु रामदास हर परीक्षा में सफल हुए। यहां से यह सिद्ध हो गया कि भाई जेठाजी ही गुरुगद्दी के लायक हैं। भाई जेठाजी (गुरु रामदास जी) को 1 सितंबर सन् 1574 ईस्वी में गोविंदवाल जिला अमृतसर में श्री गुरु अमरदास द्वारा गुरुगद्दी सौंपी गई। 16 वीं शताब्दी में सिखों के चैथे गुरु रामदास ने एक तालाब के किनारे डेरा डाला जिसके पानी में अद्भुत शक्ति थी। इसी कारण इस शहर का नाम अमृतसर (अमृत का सरोवर) पड़ा। गुरु रामदास के पुत्र ने तालाब के मध्य एक मंदिर का निर्माण कराया, जो आज अमृतसर, स्वर्ण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। अमृतसर (दरबार साहिब) की नींव साई मियामीर ने रखी। सभी श्रद्धालुओं ने कीर्तन का आनन्द लिया और गुरु का लंगर (प्रसाद) ग्रहण किया।