लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को तीन दिवसीय ‘भारतीय भाषा महोत्सव’ का आगाज करते हुए कहा कि संस्कृत को भारत के ऋषि बहुत पहले रोजगार से जोड़ चुके हैं, इसीलिए संस्कृत पढ़ने वाला व्यक्ति कभी भूख से नहीं मर सकता, बशर्ते वह अपनी बुद्धि का उपयोग सही ढंग से करे। आप एक भाषा सीख लो तो आपका रास्ता आसान हो जाता है। भाषा को बोझ समझने की बजाए इसे स्वावलंबन का माध्यम बनाया जाना चाहिए।
लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी व आधुनिक भारतीय भाषा विभाग और उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हो रहे इस महोत्सव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कही। उन्होंने कहा- शताब्दी वर्ष में भारतीय भाषा महोत्सव एक बड़ा कदम है। हम सभी को पता है कि किसी भी मनुष्य की अभिव्यक्ति का आधार उसकी भाषा होती है। हर किसी के संवाद का माध्यम भी भाषा होती है। इसके बगैर अभिव्यक्ति संभव नहीं है। इसके बाद भी हमसे चूक हो जाती है। जिस भाव के साथ हम अपनी भाषा को व्यक्त करते है, वही हमारी ताकत है। भाषा, रोजगार का बहुत बड़ा माध्यम है।
उन्होंने कहा कि भाषा को बोझ न मान आर्थिक स्वावलंबन बनाएं। प्रदेश सरकार की इंटर्नशिप स्कीम भाषा के साथ भी लागू होगी। यह तो हर जनपद में यूथ हब बनाने की स्कीम है। संस्कृत का व्यक्ति पुरोहित का कार्य करता है तो लोग उसे दक्षिणा भी देते हैं और पैर भी छूते हैं, इससे बड़ा सम्मान नहीं हो सकता। अवधी को भले ही भारतीय संविधान ने मान्यता न दी हो लेकिन भारत का जन-जन प्रतिदिन समर्थन देकर श्रीरामचरितमानस पढ़ता है। यह भारत की वास्तविक ताकत है और हमें इसे पहचानना होगा।
योगी ने कहा- ”मेरा मानना है कि हम आज भी अपने आपको पहचानने में भूल कर रहे हैं। तुलसीदास जी ने अवधी में श्रीरामचरितमानस के माध्यम से बहुत कुछ दिया। भक्ति के माध्यम से देश की स्वाधीनता की शक्ति को जगाने की ऊर्जा श्रीरामचरितमानस ने दी। श्रीरामचरितमानस किसी बंधन में नहीं बंधा है। यह हिंदी, संस्कृत, तेलुगू, मलयालम, कन्नड़ में रचित है। लौकिक संस्कृति का दुनिया में सबसे बड़ा महाकाव्य भारत ने दिया है। ‘महाभारत’ के रूप में एक ऐसा ग्रंथ भारतीय मनीषा ने दिया है जिसमें पूरे दम के साथ यह कहने का साहस है कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष यह चार मानवीय पुरुषार्थ हैं।”