अगले कुछ घंटो में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड जे ट्रंप की उम्मीदों को गहरा झटका लग सकता है। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के इतिहास में सात करोड़ से अधिक वोट पाकर जो बिडेन दुनिया के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति हो सकते हैं। यदि बिडेन अमेरिका के अगले राष्ट्रपति बने तो दुनिया नई हवा में सांस ले सकती है।
कांटे की टक्कर
जो बिडेन को अब तक 264 इलेक्टोरल वोट मिले हैं। ट्रंप को 214 इलेक्टोरल वोट मिले हैं। 538 निर्वाचक मंडल सदस्यों में से बिडेन को अब 270 का आंकड़ा छूने के लिए (राष्ट्रपति बनने के लिए) केवल 6 मतों की और आवश्यकता है। हालांकि अमेरिका के कई राज्यों में अभी मतगणना जारी है और दोनों उम्मीदवारों के बीच कांटे की टक्कर चल रही है।
नौ राज्यों में मतों की गिनती जारी
जार्जिया, नार्थ कैरोलिना, पेंसिल्वानिया, फ्लोरिडा, ओहियो, टेक्सास में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को अच्छा खासा जनसमर्थन मिला। टेक्सास में 52.2 प्रतिशत तो ओहियो, लोवा में 53.4 और 53.2 प्रतिशत लोगों ने ट्रंप को वोट दिया। लेकिन नवादा, एरिजोना, मिशिगेन, न्यूहैम्पशायर, विस्कोंसिन समेत तमाम राज्यों में जो बिडेन ने अच्छी बढ़त हासिल की है। डोनाल्ड जे ट्रंप और जो बिडेन के अलावा राष्ट्रपति पद के अन्य उम्मीदवारों को अभी तक की मतगणना में एक भी इलेक्टोरल वोट नहीं मिल पाया है। अभी करीब नौ राज्यों में मतों की गिनती जारी है।
सुप्रीम कोर्ट से ट्रंप को उम्मीद कम
राष्ट्रपति ट्रंप ने चुनाव मतगणना में धांधली का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट जाने की घोषणा की है। उन्होंने 24 घंटे पहले ही बता दिया था कि वह चुनाव में जीत गए हैं, लेकिन अब नतीजों के रुझान से लग रहा है कि अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट उन्हें कोई बड़ी राहत नहीं दे पाएगी। कारण साफ है कि जो बिडेन और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच जीत का अंतर काफी बड़ा हो गया है। इलेक्ट्रोरल वोट में 50 के करीब का अंतर आ चुका है। मतगणना के रूझान से इसके बढ़ने के ही संकेत हैं। इसलिए मतगणना पूरी होने के बाद ट्रंप के राष्ट्रपति पद पर बने रहने की संभावना काफी क्षीण है।
जो बिडेन आएं संभाले सत्ता, नई हवा में सांस लेने के तैयार है दुनिया
भारत, चीन, पाकिस्तान, ईरान, रूस जैसे देशों की निगाह अमेरिका के चुनाव पर टिकी हुई है। पूरा यूरोप अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव पर निगाह गड़ाए है। अफ्रीकी महाद्वीप, जापान और आस्ट्रेलिया के लिए भी अमेरिकी चुनाव काफी अहम है। माना जा रहा है कि खाड़ी देशों में भी जो बिडेन के राष्ट्रपति बदलने पर काफी कुछ बदल सकता है। एशिया और खासकर दक्षिण एशिया में कारोबार, सुरक्षा, आतंकवाद, व्यापार के क्षेत्र में बड़ा बदलाव आने की उम्मीद है। भारत जैसे सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सॉफ्टवेयर दिग्गज देश को भी अमेरिका में ग्रीन कार्ड को लेकर चल रहे सख्त रवैये में बदलाव आने की उम्मीद है। विदेश मामलों के जानकारों का कहना है कि जो बिडेन पूर्व राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा के समय में उप राष्ट्रपति थे। पुराने मझे हुए राजनीतिज्ञ हैं।
बिडेन से अमेरिकी जनता प्रभावित
राष्ट्रपति पद की डिबेट के दौरान उन्होंने जिस तरीके से और जिन बिन्दुओं पर अपने विचार रखे हैं, अमेरिका की जनता उससे काफी प्रभावित हुई है। वरिष्ठ पत्रकार अरूण पांडे का कहना है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक विशुद्ध कारोबारी राष्ट्रपति की नजर से अपने कार्यकाल में फैसले लिए। इससे दुनिया में प्रोटेक्शनिज्म का हव्वा खड़ा हो गया, लेकिन उम्मीद है कि बिडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद उदारवाद फिर पंख पसारेगा।
चीन व आतंकवाद पर ट्रंप का रहा कड़ा रुख
राष्ट्रपति ट्रंप का चीन और आतंकवाद के विरुद्ध काफी सख्त रवैया रहा है। ट्रंप के कार्यकाल में पाकिस्तान को काफी सुनने को मिला। उस पर अमेरिका ने सख्ती भी दिखाई। ईरान को अमेरिका का कोप झेलना पड़ा, रूस की भी चिंता काफी बढ़ गई। राष्ट्रपति ट्रंप की नीति के कारण कई देशों में आपसी तनाव भी काफी बढ़ा। भारत को ईरान के साथ अपने रिश्ते काफी समेटने पड़े। रूस के साथ रक्षा सौदे समेत अन्य के लिए अमेरिकी मंजूरी में भी तंग होना पड़ा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा और कहीं भी राष्ट्रीय हितों की अनदेखी नहीं की। राष्ट्रपति ट्रंप ने अमेरिकियों को कर के मामले में बराक हुसैन ओबामा के कार्यकाल की तुलना में थोड़ी राहत दी। वह दुनिया के देशों को अमेरिका में निवेश के लिए काफी सक्रिय रहे, वहीं ग्रीन कार्ड या एच1बी वीजा नियमों को लेकर सख्त रुख अपनाए रखा। इसकी भारत जैसे आईटी के क्षेत्र में सॉफ्टवेयर महारथी देश को कीमत भी चुकानी पड़ी। हाइड्रोकार्बन को लेकर भी ट्रंप प्रशासन का नजरिया अमेरिका केंद्रित बना रहा।
कोई बड़ा सैन्य अभियान नहीं चलाया
विदेश मामलों के जानकारों का कहना है कि बिना पुरानी परंपरा, अमेरिका की स्थापित हो चुकी लीडरशिप की परवाह किए राष्ट्रपति ट्रंप ने नए दरवाजे खोल दिए थे। चीन के साथ अंतरराष्ट्रीय व्यापार युद्ध को काफी उच्च स्तर का आयाम दे दिया था। हालांकि राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका ने पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश (सीनियर और जूनियर), बराक हुसैन ओबामा की तरह किसी देश के विरुद्ध कोई बड़ी सैन्य कार्रवाई नहीं की। बड़ा सैन्य आपरेशन नहीं चलाया।
बिडेन आए तो कर सकते हैं ऐसी पहल
जो बिडेन सत्ता में आए तो माना जा रहा है कि वह काफी हद तक पूर्व राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा की लाइन पर चल सकते हैं। उनका मुख्य ध्यान अमेरिका की दुनिया में लीडरशिप को मजबूत करने पर रह सकता है। वह ग्रीन कार्ड के मामले में लचर रवैया अपना सकते हैं। इसका लाभ भारत को मिल सकता है। चीन के साथ अंतराष्ट्रीय व्यापार युद्ध की अमेरिका की रफ्तार को कम कर सकते हैं। अमेरिका को प्रोटेक्शनिज्म की नीति से उदारवाद की तरफ लाकर वह विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं समेत तमाम क्षेत्रों में भूमिका बढ़ा सकते हैं। ईरान को प्रतिबंधों में ढील दे सकते हैं। रूस के साथ भी तनाव को कम करने पर जोर रहने की संभावना है। जो बिडेन आतंकवाद, कट्टरता के विरुद्ध युद्ध में थोड़ा लचर रवैया अपना सकते हैं। यूरोप, एशिया, अफ्रीका समेत दुनिया के महाद्वीपों में उदारवाद के साथ अमेरिकी हितों की रक्षा का कदम उठा सकते हैं।
भारत पर क्या पड़ेगा असर?
बिडेन ने राष्ट्रपति चुनाव के दौरान भारत के साथ संबंधों पर काफी जोर दिया है, लेकिन आतंकवाद और कट्टरता के खिलाफ उनका रवैया लचर हो सकता है। इसका भारत जैसे देशों को नुकसान हो सकता है। जो बिडेन की चीन के साथ कुछ नरम नीति का भी भारत जैसे देश पर असर पड़ सकता है। ग्रीन कार्ड में रियायत, कारोबार में सहूलियत का कदम उठाने से भारत जैसे देश को बड़ा लाभ मिल सकता है। कुछ और क्षेत्रों में द्विपक्षीय व्यापार के रिश्ते मजबूत हो सकते हैं। रक्षा और विदेश मंत्रालय तथा कूटनीति के जानकारों का कहना है कि जो बिडेन के सत्ता में आने के बाद अमेरिका और भारत के बीच रणनीतिक, कूटनीतिक साझेदारी पर कोई खास फर्क पडऩे की संभावना बहुत कम है। दोनों देशों के बीच में सामरिक साझेदारी का स्वरुप भी बना रहेगा। रक्षा हथियारों के सौदे पर भी कोई फर्क नहीं पडऩे वाला है। वहीं अमेरिका की हाइड्रोकार्बन, अर्थ व्यवस्था, कट्टरता के क्षेत्र में थोड़ी उदारता के बाद भारत को ईरान, रूस समेत अन्य देशों के साथ संबंधों में फायदा हो सकता है। इसका भारतीय अर्थ व्यवस्था पर भी सकारात्मक असर पडऩे की संभावना है।