रोटोमैक ग्रुप के बाद शहर के सबसे बड़े बैंकिंग फ्रॉड के आरोपी फ्रॉस्ट इंटरनेशनल के मालिक उदय देसाई, बेटे सुजय के साथ आखिरकार सलाखों के पीछे पहुंच ही गए। विभिन्न सरकारी बैंकों के 3595 करोड़ की देनदारी को 1200 करोड़ रुपये में मैनेज करने की कोशिशें भी फेल हो गईं। इसके लिए कारोबारी और उसके चहेतों ने एड़ी-चोटी का जोर लगा रखा था।
सूत्रों के मुताबिक, कारपोरेट मामलों के मंत्रालय के तहत आने वाले गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) के सामने बच निकलने की पिता-पुत्र की दलीलें भी काम न आईं। इसी तरह 14 सरकारी बैंकों के लगभग चार हजार करोड़ रुपये के देनदार विक्रम कोठारी भी सीबीआई के बाद अब एसएफआईओ की गिरफ्त में हैं। इस मामले में विक्रम को सीबीआई ने फरवरी 2018 में गिरफ्तार किया था। इसके करीब एक साल बाद वह जेल से जमानत पर रिहा हुए थे।
फ्रॉस्ट मामले में 11 और हैं आरोपी
कारोबारी उदय देसाई ने अपनी कंपनियों के नाम से बैंकों से ऋण लिया था। बैंक की शिकायत पर सीबीआई ने इन कंपनियों के 11 निदेशकों के खिलाफ भी केस दर्ज किया था। माना जा रहा कि एसएफआईओ इन आरोपियों को भी गिरफ्तार कर सकता है।
जांच एजेंसी के हाथ लगे सबूत
सूत्र बताते हैं कि उदय देसाई ने जिस काम के लिए ऋण लिया उसमें उसका इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि कई गुमनाम प्रोजेक्ट में ऋण की रकम खपा दी। जांच एजेंसी को लोन की रकम खपाने वाले कई प्रोजेक्ट के दस्तावेज हाथ लगे हैं। इन प्रोजेक्टों को चलाने में शहर के कई कारोबारी घोषित तौर पर तो कुछ अघोषित तौर पर उनके साथी हैं। जांच में इस बिंदु को भी शामिल किया गया है।
आठ साल में हासिल किए 3000 करोड़
उदय देसाई की कंपनियों ने वर्ष 2002 से 2010 के बीच तीन हजार करोड़ रुपये से अधिक का लोन लिया। वर्षों तक लोन की किस्तें ठीक चलने और लगातार लिमिट बढ़ने के बाद वर्ष 2018 में इनके खाते एनपीए होने लगे। लगातार डिमांड नोटिस जारी करने के बाद भी इनकी कंपनियों से लोन की रकम वापस नहीं हुई तो बैंकों ने सख्ती शुरू की। तमाम बैंकों ने मुंबई, कानपुर और गुड़गांव स्थित संपत्तियों को कब्जे में ले लिया। कई संपत्तियां जब्त होने की स्थिति में हैं और कई नीलामी प्रक्रिया में चल रही हैं।