वायु प्रदूषण के चलते पूरी दुनिया में हर साल 88 लाख लोग जान गंवाते हैं। यह युद्ध, एचआईवी और धूम्रपान से भी ज्यादा है। उम्र प्रत्याशा में भी औसतन तीन साल कमी आई है। जर्मनी के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में हुए एक अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि वायु प्रदूषण पूरी दुनिया में महामारी का रूप ले चुका है।
अध्ययन में बताया गया है कि प्रदूषण से जहरीली हो रही हवा में सांस लेने से लोगों की कम उम्र में ही मौत हो रही है। हालात इतने खराब हैं कि भारत और जापान सहित पूर्वी एशिया में लोगों की उम्र प्रत्याशा करीब चार साल कम हो गई है। वहीं, यूरोपीय देशों में वायु प्रदूषण के चलते लोगों की औसत उम्र में करीब 2.2 साल की कमी आई है।
लंबे समय तक प्रदूषण फैलाने वाले तत्वों के संपर्क में आने से हृदय और रक्त की धमनियां प्रभावित होती हैं, जो मौत का बड़ा कारण हैं। हालांकि, अध्ययन में कहा गया है कि यदि मानवीय गलतियों को सुधार लिया जाए तो वायु प्रदूषण के चलते होने वाली दो-तिहाई मौतों से बचाव संभव है।
अध्ययन के दौरान मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर केमेस्ट्री के प्रो. जोस लेलीवेल्ड के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने वायु प्रदूषण और उम्र प्रत्याशा के बीच संबंध का विश्लेषण किया। कंप्यूटर मॉडल की मदद से उन्होंने बताया कि पूरी दुनिया में लोगों की उम्र प्रत्याशा में दो साल 10 महीने की कमी आई है।
यह पूरी दुनिया में होने वाली मौतों के किसी भी दूसरे कारण से ज्यादा है। धूम्रपान लोगों की उम्र प्रत्याशा में 2.2 साल और एचआईवी/एड्स 0.7 साल की कमी लाता है। मलेरिया जैसी बीमारियों के चलते लोगों की औसत उम्र 0.6 साल और युद्ध सहित अन्य हिंसक घटनाओं में होने वाली मौतों के चलते 0.3 साल की कमी होती है।
नई मॉडलिंग तकनीक के जरिये शोधकर्ताओं ने बताया है कि साल 2015 में पूरी दुनिया में वायु प्रदूषण के चलते 88 लाख लोगों को कम उम्र में जान गंवानी पड़ी। तंबाकू के सेवन से दुनिया भर में सालाना 72 लाख मौतें होती हैं। वहीं, एड्स के चलते 10 लाख, मलेरिया के कारण छह लाख और हिंसक घटनाओं में हर साल 5.3 लाख लोगों की जान विश्व में जाती है।