उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले के बाद विश्वविद्यालयों में वार्षिक परीक्षा को लेकर लंबे समय से चल रहा ऊहापोह खत्म हो गया है। अब वहां प्रमोशन के तरीकों पर विचार शुरू हो गया है। काशी विद्यापीठ और संस्कृत विश्वविद्यालय को शासन की गाइडलाइन का इंतजार है ताकि प्रमोशन की प्रक्रिया में एकरूपता रहे।
शिक्षकों के मुताबिक प्रमोशन की प्रक्रिया निर्धारित करना आसान नहीं होगा। सबसे बड़ा सवाल यह कि प्रथम वर्ष के छात्रों को किस आधार पर प्रमोशन दिया जाएगा। कई विश्वविद्यालयों में वार्षिक परीक्षाएं शुरू हुईं लेकिन बीच में स्थगित हो गईं। कुछ विश्वविद्यालयों में परीक्षाएं शुरू ही नहीं हो पाईं है। जिन विश्वविद्यालय में परीक्षाएं शुरू हो गईं और जो पेपर हो चुके हैं, उनके अंकों के आधार पर बचे विषयों में भी अंक दिए जा सकते हैं। जैसा सीबीएसई कर रहा है। मगर जहां प्रथम वर्ष की परीक्षा नहीं हुई है, वहां के छात्रों के प्रमोशन का आधार क्या होगा, यह शिक्षकों की समझ में नहीं आ रहा है।
दूसरी बड़ी समस्या अंतिम वर्ष के छात्रों को लेकर आ रही है। यह स्पष्ट नहीं है कि इन छात्रों को प्रथम और द्वितीय वर्ष के अंकों के आधार प्रमोशन दिया जाएगा या तृतीय वर्ष में जितने पेपर हुए हैं, उनके आधार। आंतरिक मूल्यांकन या मौखिकी के आधार पर प्रमोशन में भी व्यावहारिक कठिनाइयां हैं। स्नातक के कई पाठ्यक्रमों में आंतरिक मूल्यांकन और वायवा नहीं होता। सिर्फ साल में एक बार लिखित परीक्षा होती है। सेमेस्टर सिस्टम से चलने वाले पाठ्यक्रमों में उतनी परेशानी नहीं है। यहां पूरे बैच को प्रमोट किया जा सकता है। मगर छात्रों को दो बार परीक्षा देनी पड़ सकती है।
काशी विद्यापीठ के कुलसचिव डॉ. साहब लाल मौर्य का कहना है कि प्रमोशन की प्रक्रिया के संबंध में शासन की गाइडलाइन का इंतजार है।