नई दिल्ली। महिलाओं से दुष्कर्म के बढ़ते मामलों और न्याय में देरी से लोगों में आती हताशा और बेचैनी ने सुप्रीम कोर्ट को चिंतित कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म के मुकदमों की रफ्तार बढ़ाने के लिए कमर कस ली है। कोर्ट ने बुधवार को ऐसे मामलों पर स्वत: संज्ञान लिया। कोर्ट ने क्रिमनल जस्टिस सिस्टम की रफ्तार बढ़ाने और मौजूदा कानून व न्याय प्रणाली को लागू करने की स्थिति जानने के लिए पुलिस थाने से लेकर अदालत तक का हर स्तर का सारा रिकार्ड और स्टेटस रिपोर्ट तलब की है।
केंद्र और राज्य सरकारों तथा उच्च न्यायालयों को नोटिस जारी
कोर्ट ने इस मामले में केन्द्र और राज्य सरकारों के अलावा सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरलों को नोटिस जारी किया है। मामले पर कोर्ट 7 फरवरी को फिर सुनवाई करेगा।
सीजेआई ने दुष्कर्म के मामलों को त्वरित निपटारे के लिए लिया स्वत: संज्ञान
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, बीआर गवई और सूर्यकांत की पीठ ने महिलाओँ से दुष्कर्म और यौन उत्पीड़न के मुकदमों के त्वरित निपटारे के लिए क्रिमनल जस्टिस सिस्टम की समीक्षा करने पर स्वत: संज्ञान लिया है। कोर्ट ने मामले की सुनवाई में मदद करने के लिए वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा को न्यायमित्र नियुक्त किया है। कोर्ट ने लूथरा को सारी जानकारी और सूचना एकत्रित होने के बाद कानून लागू करने और न्याय की रफ्तार बढ़ाने व व्यवस्था को ज्यादा प्रभावी करने के बारे में सुझाव देने को कहा है।
सालिसिटर जनरल न्यायमित्र लूथरा को पूरा सहयोग दें- सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट ने सालिसिटर जनरल तुषार मेहता से अनुरोध किया है कि वे इस संबंध में न्यायमित्र लूथरा को पूरा सहयोग दें। कोर्ट ने मामले में केंद्र सरकार के गृह सचिव, और राज्यों के मुख्य सचिवों व डीजीपी को नोटिस जारी किया है। इसके अलावा सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरलों को भी नोटिस जारी किया गया है। कोर्ट ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के सेकरेट्री जनरल सभी राज्यों और उच्च न्यायालयों से सूचना मंगाने मे सहयोग करेंगे।
मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने दुष्कर्म जैसे मामलों में देरी से लोगों में पनपती हताशा और बेचैनी पर चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा कि निर्भया कांड से पूरा देश हिल गया था उसके बाद ऐसे मामलों में प्रभावी जांच और त्वरित निपटारे के लिए आपराधिक कानून में संशोधन किये गए, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि अपेक्षित नतीजे अभी भी नहीं मिले हैं।
क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में दुष्कर्म के 32559 मामले दर्ज हुए। आदेश में कोर्ट ने कहा कि हाल ही में देखने में आया है कि ऐसे मामलों में देरी से लोगों में हताशा और बेचैनी पनप रही है। निर्भया का एक अकेला मामला नहीं है जिसे अंतिम मुकाम तक पहुंचने में इतनी देर लगी। वास्तव में तो यह एक ऐसा मामला था जिसमें लोगों के गुस्से को देखते हुए संबंधित एजेंसियों ने फुर्ती से काम किया।
कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में क्रिमनल कानून के अनुपालन को देखना होगा। इस बारे में जमीनी हकीकत जानने के लिए जांच एजेंसी, मेडिको फारेंसिक एजेंसी, अभियोजक एजेंसी, कानूनी सहायता, पुनर्वास और यहां तक कि अदालत तक से सूचना एकत्र कर देखनी होगी ताकि स्थिति का समग्र अंदाजा मिल सके।
कोर्ट ने ऐसे मामलों को दर्ज करने के लिए पुलिस थानों में महिला अधिकारी की उपलब्धता से लेकर अपनी बात बताने में असमर्थ पीडि़ता की बात समझाने के लिए विशेषज्ञ की उपलब्धता तक का ब्योरा मांगा है। यह भी पूछा है कि क्या राज्यों में ऐसे मुकदमें दर्ज करने के लिए कोई स्टैंडर्ड आपरेटिंग स्सिटम है। पीडि़ता की चिकित्सीय जांच के लिए सरकारी और निजी अस्पतालों तक मेडिकल किट की उपलब्धता और फारेंसिक जांच लैब की स्थिति भी पूछी है।
कोर्ट ने पूछा है कि क्या कानून में तय दो महीने की अवधि के भीतर पुलिस ऐसे मामलों की जांच पूरी कर रिपोर्ट अदालत में दाखिल कर देती है क्या अदालतें तय दो महीने की अवधि में ऐसे मुकदमों का निपटारा कर देती हैं। क्या अदालतें मुकदमों का निपटारा करने में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक सुनवाई का केस कलेन्डर तैयार करती हैं ताकि मुकदमे का निपटारा तय समय में पूरा हो। क्या अदालतों में ऐसे मुकदमों की सुनवाई के लिए पर्याप्त महिला जज और ढांचागत संसाधन मौजूद हैं।
कोर्ट ने पूछा है कि ऐसे मामलों की एफआइआर दर्ज न करने पर संबंधित पुलिस कर्मी को सजा का प्रावधान है कितने मामलों में ऐसा हुआ है ब्योरा दो। इतना ही नहीं कोर्ट ने निर्भया फंड के खर्च का ब्योरा भी मांगा है।